टोक्यो ओलंपिक 2021 की शुरुआत हो चुकी है और भारत ने अपना पहला पदक भी जीत लिया है. कोरोना काल में हो रहे इन खेलों के महाकुंभ में अक्सर एक नजारा कई बार देखने को मिला है, पोडियम पर खड़े होकर जब भी कोई खिलाड़ी पदक जीतता है तो वे अक्सर इन मेडल्स को मुस्कुराते हुए अपने दांतों से काटते हुए दिखाई देते हैं।
इंटरनेशल सोसाइटी ऑफ ओलंपिक हिस्टोरियंस के प्रेसिडेंट डेविड वालेचिंस्की ने कुछ साल पहले सीएनएन के साथ इस बारे में बात की थी, डेविड ने कहा था कि मेडल जीतने के बाद एथलीट फोटोग्राफर्स की रिक्वेस्ट के लिए ऐसा करते हैं और अपने पोज को यादगार बनाने के लिए वे इसे दांतों से काटते हैं।
गौरतलब है कि डेविड द कंपलीट बुक ऑफ द ओलंपिक के सह-लेखक भी रह चुके हैं. उन्होंने कहा कि फोटोग्राफर्स इसे एक बेहतरीन शॉट के तौर पर देखते हैं. वे इसे काफी महत्व देते हैं, कहीं ना कहीं इस पोज के साथ तस्वीरों की वैल्यू में इजाफा होता है।
डेविड से जब पूछा गया कि क्या उन्हें लगता है कि एथलीट्स खुद से ऐसा करते होंगे, इस पर बात करते हुए डेविड ने कहा कि मुझे लगता है कि इस पोज के मायने फोटोग्राफर्स और मीडिया के लिए ज्यादा हैं और मेरा मानना है कि एथलीट्स खुद से ऐसा नहीं करना पसंद करेंगे।
इसके अलावा सोने को दांतों से काटने की ऐतिहासिक परंपरा भी रही है, चूंकि सोना मुलायम धातु होता है, ऐसे में इसे काटकर इसकी शुद्धता का परीक्षण किया जाता है, यही कारण है कि लोग सोने को दांतों के काटने के साथ ही पता लगाते थे कि ये असली सोना है या गोल्ड प्लेट चढ़ाई गई है।
अगर सोना असली होता है तो इस पर निशान पड़ने की संभावना ज्यादा हो जाती है. लेकिन इसके बावजूद ओलंपिक खिलाड़ियों के गोल्ड मेडल पर किसी तरह का कोई निशान काटने के बाद भी नहीं पड़ता है, इसका कारण ये है कि ओलंपिक के गोल्ड मेडल में काफी कम मात्रा सोने की होती है।
बता दें कि साल 2016 के रियो ओलंपिक्स में महज एक प्रतिशत से कुछ अधिक सोने का इस्तेमाल गोल्ड मेडल में किया गया था। इसके अलावा इन गोल्ड मेडल में 93 प्रतिशत सिल्वर और 6 प्रतिशत कांस्य का इस्तेमाल किया गया था।