अगर आपके पास भी फटे-पुराने नोट है, तो हो यहाँ जाकर ले सकते है नए करारे नोट


हम सभी के जीवन में पैसों की कीमत सबसे ज़्यादा होती हैं. तभी तो हम इन्हे संभल कर और सोच समझकर खर्च करने में विश्वास रखते हैं। बाजार में सब्ज़ी लेते समय या कभी-कभी जल्दबाज़ी में दूकानदार को या टैक्सी चालक से छुट्टे पैसे लेते समय कई बार हम पैसों की जाँच (की वह नोट फटी हुई है, या नहीं) किए बिना ही उसे ले लेते हैं। फिर उन्ही पैसों को जब हम कही और खर्च करते समय देखते हैं तब हमें पता चलता ही की उन पैसों में से एक नोट फटी हुई है और हमने उसे बिना देखे ही रख लिया था।

और वही से हमारे दिमाग की कसरत शुरू हो जाती है, कि अब इन फ़टे हुए पैसों का आखिर इस्तेमाल कैसे करें? क्योंकि इस तरह की चलन का इस्तेमाल आप कही और नहीं कर पाते, और ना ही किसी को दे पते हैं। मगर इन फ़टे हुए चलन को बैंक में जमा कर इसके बदले में नए नोटों को प्राप्त कर सकते हैं. मगर ऐसा करते समय उस नोट को जारी करने वाली संस्था, गारंटी, प्रॉमिस क्लॉज़, गवर्नर के हस्ताक्षर, अशोकस्तम्भ या महात्मा गाँधी का फोटो और वॉटर मार्क का होना अनिवार्य है।

आरबीआई के नियमों के अनुसार इन सभी पहलुओं के होने पर ही ऐसे चलनों को बदला जा सकता है. कई दुकानों में ऐसे फ़टे पुराने नोटों को बदला जा सकता है। मगर इसके बदले अगर आप 500 और 2००० रुपयों के बंडल को बदलने के लिए आपको 1०० से 2०० रुपए देने पड़ते हैं। हालाँकि नोट बदलने का यह तरीका बिलकुल गलत है. इसी के चलते सरकार द्वारा सार्वजनिक बैंक में इन नोटों को बदलने की सुविधा को उपलब्ध कराई गई है।

कोई भी नोट या चलन जो ख़राब है, लेकिन उस नोट के आगे और पिछले हिस्से के सारे आंकड़े मौजूद हो, तो ऐसे नोटों को किसी भी सार्वजनिक बैंक के काउंटर पर, निजी करेंसी चेस्ट काउंटर तथा आरबीआई के रीजनल ऑफिस में बिना किसी करवाई के या फॉर्म को भरे बिना बदला जा सकता है। “भारतीय रिज़र्व बैंक नियमावली, २००९” को जारी कर आरबीआई ने भारतीय नागरिकों को ख़राब और पुराने नोटों को बदलने की सुविधा प्रदान की। इस नियमावली में लिखा गया है कि, “ख़राब या फ़टी हुई वह नोट यानी जो दो से अधिक टुकड़ों को जोड़कर बनाई गई हो, या जिसका एक हिस्सा पूरी तरह फटा हो।”

तथा इस नियमावली में एक और मुद्दा शामिल किया गया है, जो बताता है कि अगर 1, 2, 5, 10 और 20 रुपयों में से कोई भी नोट पचास प्रतिशत से कम फ़टी हो तो उन नोटों के बदले में पुरे पैसे दिए जायेंगे। और अगर यही चलन पचास प्रतिशत से ज़्यादा फ़टी या ख़राब हो तो ऐसे पैसों को बैंक नहीं बदल पाएगी। वही 50 रुपए और उससे अधिक चलनों के लिए अलग प्रावधान किये गये हैं।

50 और उससे अधिक कीमत वाले नोटों के आकर के ठीक 65 प्रतिशत होने पर ही इन चलनों को बदला जा सकता है, और अगर यही नोट अपने वास्तविक आकर की तुलना में 40 प्रतिशत से अधिक तथा 65 प्रतिशत से कम इस दायरे में फटी हो या ख़राब हो तो उन्हें बदलने पर उन नोटों के कीमत के केवल आधे पैसे ही बैंक प्रदान करेगी। अगर आपके पास कोई ऐसी नोट आती है, जिसपर कुछ लिखा हुआ हो तो बैंक ऐसे नोटों को बदलने के बजाए आपके खाते में सीधे जमा कर देती है।

इन ख़राब चलनों को बदलने पर आपको सिक्के तथा दस रुपए के नोट दिए जाते हैं. मगर अब भी एक सवाल हर किसी के मन में होगा कि, आखिर बैंक इन ख़राब चलनों का क्या करती है? हर साल करीबन करोड़ों रुपए फटते हैं, या ख़राब होते हैं। और आरबीआई के पास ऐसे चलनों भण्डार मौजूद होता है, क्योंकि इन ख़राब और फ़टे-पुराने चलनों को अक्सर नागरिक बैंक जाकर बदलवा लेते हैं, इन चलनोंको दुबारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, और इसी लिए ऐसे चलनों को नष्ट किया जाता है।

वैसे इन चलनों को नष्ट करने की एक अलग प्रक्रिया होती है. आरबीआई के पास लाखों की संख्या में ऐसे नोट जमा किए जाते हैं. इन सारे नोटों को एक कमरे में रख दिया जाता है. और फिर हर साल ऐसे ख़राब चलनों को रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया जला देती है. २०१०-२०११ के दौरान १, २८५ नोटों को जला दिया गया था, जिनका मूल्य था लगभग १,७८,८३० करोड़ रुपए। इन चलनों को बनाने के लिए विशिष्ठ प्रकार का कागज़ तथा स्याही का इस्तेमाल किया जाता है, जिसकी वजह से इतनी बड़ी संख्या में मौजूद इन ख़राब चलनों को जलाते समय बड़े पैमाने पर धुआँ निर्माण होता है, जिसके कारण पर्यावरण को क्षति पहुँचती है।

पर्यावरण को होने वाले हानि को ध्यान में रखते हुए अब इन चलनों को जलाने के बजाए इनका इस्तेमाल पेन स्टैंड, पेपर वेट आदि, वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है। ख़राब और फ़टे-पुराने नोटों के कारन पर्यावण में होने प्रदुषण को कम करने के लिए अब सरकार प्लास्टिक के नोटों को बनाने के विचार में हैं, जो ना तो ख़राब होंगी, और ना ही फटेंगी। प्लास्टिक वाली चलनों को कब बनाया जाएगा इसकी फिलहाल कोई घोषणा नहीं की गई। मगर वर्तमान समय में कुछ इस तरह चलनों को जलाकर उन्हें नष्ट किया जा रहा है।