हिंदू मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या के अगले दिन गोवर्धन पूजा का विधान है। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के कहर से बृजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया था। इस पर्वत के नीचे ही सात दिनों तक बृजवासियों ने शरण ली थी। भारी वर्षा से बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को वरदान दिया कि हर वर्ष कार्तिक माह की शुक्ल प्रतिपदा को उसकी पूजा की जाएगी।
बृजवासियों से नाराज हुए इंद्र वर्तमान में मथुरा जिले के वृंदावन इलाके में स्थित गोवर्धन पर्वत की हर साल परिक्रमा करने के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। द्वापर युग की कथा के अनुसार देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों और बल पर अहंकार हो गया। बृजवासियों से अपनी पूजा न होने पर नाराज इंद्र ने मथुरा में भारी बारिश से कहर ढा दिया। लगातार होती बारिश से तालाब भर गए और नदियों में उफान आ गया। बृजवासियों के घर ढहने लगे। परेशान बृजवासी श्रीकृष्ण के पास पहुंचे और इंद्र के कोप से बचाने की गुहार लगाई।
श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड तोड़ा श्रीकृष्ण ने इंद्र से तत्काल बारिश और प्रलय रोकने को कहा लेकिन इंद्र नहीं माने। इंद्र के घमंड को तोड़ने के लिए और बृजवासियों की सुरक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया। इसके बाद गोवर्धन पर्वत के नीच बृजवासियों ने अपनी गायों और जानवरों के साथ शरण ली। लगातार 7 दिनों तक भारी प्रलय के बाद भी बृजवासियों को कुछ नहीं हुआ और अंत में इंद्र का अहंकार चकनाचूर हो गया।
गोवर्धन पर्वत को मिला वरदान श्रीकृष्ण ने बृजवासियों को शरण देने पर गोवर्धन पर्वत को वरदान दिया कि द्वापर समेत कलयुग में तुम पूजे जाओगे। जो भी व्यक्ति तुम्हारी परिक्रमा करेगा उसके दुखों का नाश हो जाएगा। जो भी तुम्हारी पूजा और परिक्रमा करेगा उसे दुश्मनों के छल कपट से कुछ नहीं होगा।
श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह की शुक्ल प्रतिपदा से गोवर्धन पर्वत की पूजा की परंपरा और अन्नकूट पर्व मनाए जाने की शुरुआत की। इस तरह से सबसे पहले बृजवासियों ने गोवर्धन पूजा की शुरुआत की। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन पूजा से दुखों का नाश होता है और दुश्मन अपने छल कपट में कामयाब नहीं हो पाते हैं। यह गोवर्धन पर्वत आज भी मथुरा के वृंदावन इलाके में स्थित है।