साउथ की सबसे बड़ी फिल्मों में गिनी जाने वाली केजीएफ (KGF) के मेकर्स अब इसका दूसरा पार्ट लेकर आ रहे हैं। सोने की खदान से जुड़ी इस फिल्म की कहानी फैंस को इतनी पसंद आई थी कि लोग पहले पार्ट की रिलीज के बाद से ही सीक्वल की डिमांड करने लगे थे। वहीं, फिल्म केजीएफ जिस खादान पर आधारित है उसका इतिहास 100 सालों से भी ज्यादा पुराना है। आपको जानकर हैरानी होगी की इस फिल्म में दिखाई गई कहानी रियल लाइफ की घटनाओं से प्रेरित है।
इस खादान के इतिहास को देखकर ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि असल में भी KGF की कहानी फिल्म जितनी ही ‘खूनी’ है। केजीएफ में खुदाई का इतिहास 121 सालों पुराना है और बताया जाता है कि इन सालों में यहां की खादान से 900 टन सोना निकला है। कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में स्थित ‘केजीएफ’ का पूरा नाम कोलार गोल्ड फील्ड्स (Kolar Gold Fields) है।
भारत को यूं ही सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था। सोने की चाहत में केजीएफ के इलाके ने खू* खराबा भी देखा और तरक्की भी देखी हैं। साउथ की मशहूर फिल्म KGF की कहानी दर्शकों को इतनी पसंद आई कि पहले पार्ट के बाद सीक्वल की डिमांड बढ़ने लगी। हो भी क्यों ना, फिल्म की कहानी बेहद दिलचस्प जो हैं। जानिए केजीएफ की सच्ची कहानी। सोने की जिस खदान पर फिल्म बनाई गई हैं उसका इतिहास करीब 121 साल पुराना हैं।
असल में केजीएफ यानी ‘कोलार गोल्ड फील्ड्स’ (Kolar Gold Fields) की कहानी ही खूनी हैं। जहां सोने के भंडार हैं, वहां कहानी खूनी होगी। सोने से मालामाल इस इलाके में कई अनसुनी कहानियां भी दफ्न हैं। केजीएफ में 121 साल पहले खुदाई के दौरान करीब 900 टन सोना मिला था। कर्नाटक में कोलार गोल्ड फील्ड्स हैं।इस खदान के बारे में ब्रिटिश सरकार के लेफ्टिनेंट जॉन वारेन ने एक लेख लिखा था।
इसके अनुसार 1799 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान की हत्या करने के बाद कोलार और उसके आस-पास के इलाके पर कब्जा कर लिया था। कुछ वर्षों के बाद अंग्रेजों ने यह जमीन मैसूर राज्य को दे दी, लेकिन सोना उगलने वाले क्षेत्र कोलार को अपने पास रख लिया। सोने की खुदाई में कई मजदूरों की जान चली गई थी। वारेन के इस लेख के अनुसार चोल साम्राज्य के दौरान लोग हाथ से जमीन खोदकर सोना निकालते थे। एक बार वॉरेन ने गांववालों को लालच देकर सोना निकलवाया तो ढेर सारी मिट्टी में से थोड़े से सोने के कण ही निकलते थे।
सालों बाद वॉरेन के इस लेख को ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लेवेली ने 1871 में पढ़ा और उन्हें सोना पाने का जुनून सवार हो गया। उन्होंने शोध करना शुरू किया। 1873 में मैसूर के महाराजा से खुदाई के लिए अनुमति ली और 1875 में खुदाई शुरू की। आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि ये काम कितना भयानक था। रोशनी के लिए मशालों और लालटेनों का इस्तेमाल किया जाता था। केजीएफ भारत का पहला ऐसा इलाका बन गया, जहां बिजली की आपूर्ति शुरू की गई थी। 1902 में मशीनों की सहायता से 95 प्रतिशत सोना निकलने लगा। खदान में 30 हजार मजदूर काम करने लगे।
आजादी के बाद भारत सरकार ने इन खदानों को अपने कब्जे में ले लिया और भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड कंपनी काम देखने लगी। शुरू में सब ठीक रहा लेकिन 80 के दशक में कंपनी की हालत खराब होने लगी, हालात ऐसे हुए कि मजदूरों को देने के लिए पैसे तक नहीं थे। 2001 तक उत्खनन रोकने का निर्णय लिया गया और उत्खनन बंद होते ही कोलार स्वर्ण क्षेत्र खंडहर में तब्दील हो गया। लेकिन कहा जाता है कि सोना आज भी यहां मौजूद हैं। केजीएफ पार्ट 2 में एक डायलॉग हैं जिसे सुनकर आप इस कहानी की सच्चाई पर यकीन करने लगेंगे। ‘खून से लिखी हुई कहानी है ये… स्याही से नहीं बढ़ेगी। अगर आगे बढ़ाना है, तो फिर से खून ही मांगेगी’।बंद खदानों की दोबारा खुदाई कराई गई तो फिर से खून मांगा जाएगा।