कहते है ना मेहनत करो फल की चिंता मत करो। ये बात सच कर दिखाया एक ऐसी गरीब शक्श ने जिसे पैदा होने के साथ ही कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। छोटी सी उम्र में पिता का साया छीन गया, गरीबी और लाचारी में मजबूर होकर मां ने अपने ही बच्चे को अनाथालय भेज दिया दिया। लेकिन असफलता को मजबूरी का हवाला देने वाले वाले व्यक्ती जिंदगी भर अपनी नाकामयाबी को मजबूरी की तराजू पर ही तोलते रहते है। लेकिन एक जुनूनी व्यक्ति को हर हालत व मजबूरी में रास्ता ढूंढना ही पड़ता है। ऐसी ही एक जाबाज की कहानी हम आपको आज बताने जा रहे है।
कौन है ये फौलाद?
केरल के मलप्पुरम जिले के एडवान्नाप्पारा में मोहम्मद अली शिहाब का जन्म हुआ। शिहाब के घर की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह छोटी सी उम्र में ही अपने पिता के साथ पान और बांस की टोकरियां बेचने लगे। स्थिति तब और बिगड़ गई जब एक लंबी बीमारी के कारण शिहाब के पिता की म!त साल 1991 में हो गई। उस समय शिहाब घर की जिम्मेदारी उठाने लायक भी नहीं थे।
पीढ़ा से भरी थी जिंदगी
शिहाब के पिता की मृ**त्यु के बाद उनकी मां पर पांच बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। उनकी मां ना पढ़ी-लिखी थीं और ना ही उन्हें ऐसा कोई काम आता था, जिससे वह अपने बच्चों का पालन पोषण कर सकें। शिहाब की मां गरीबी से मजबूर हो अपने बच्चों को कभी खुद से अलग करना सही समझा। और शिहाब को अनाथालय में डाल दिया कि कम से कम वहां पेट भर खाना तो मिलेगा।
21 सरकारी परिक्षा पास किया
शिहाब को अनाथालय में ना केवल पेट भरने को खाना मिला बल्कि वह एक नई उम्मीद और जिंदगी मिली और रास्ता भी मिला, जिससे उनकी ज़िंदगी बदल गई। यहां उन्हें पढ़ने का मौका मिला। शिहाब पढ़ाई में बहुत अच्छे थे। शिहाब उस अनाथालय में 10 साल रहे। इस दौरान वह अपनी पढ़ाई से सबको अपनी तरफ आकर्षित करते। शिहाब के लिए अनाथालय किसी जन्नत से कम नहीं था। मोहम्मद अली शिहाब ने यहां रहते हुए UPSC के अलावा विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा आयोजित 21 परीक्षाओं को पास करने में सफल रहे।
UPSC का सफर
शिहाब ने 25 साल की उम्र में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा देने का फैसला किया लेकिन आपको बता दे, उससे पहले उन्होंने एसएसएलसी (SSLC) की परीक्षा को भी दिया और अच्छे अंकों से पास करते हुए टीचर ट्रेनिंग कोर्स किया। जिसके बाद उन्हें शिक्षक की नौकरी मिल गई। शिहाब कहते हैं कि जब वह अनाथालय में थे, तब देर रात तक पढ़ाई करते थे। सबकी नींद खराब न हो इसलिए वह सिर पर चादर ओढ़कर उसके भीतर लैंप की रोशनी में पढ़ाई किया करते थे ताकि अन्य लोग जो सो रहे है उनके कोई तकलीफ ना हो। इस दौरान उन्होने चपरासी से लेकर होटल में हेल्पर, क्लर्क और मोटर ऑपरेटर तक का सभी तरह का काम किया है।
सफलता का जश्न
सिविल सर्विस की परीक्षा के पहले दो प्रयासों में मोहम्मद अली शिहाब असफल रहे थे, लेकिन उनका इरादा मजबूत था। शिहाब ने अपने तीसरे प्रयास साल 2011 में 226वे रैंक के साथ यूपीएससी (UPSC) परीक्षा पास किया। इंग्लिश में कमजोर होने के कारण शिहाब को इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ी थी, जिसमें उन्होंने 300 में से 201अंक प्राप्त हुए। उसके बाद शिहाब नागालैंड के कोहिमा में नियुक्त हुए। एक गरीब पान बेचने वाला पिता और लाचार मां के बेटे ने अपने सपने को पूरा किया।