कोरोना के कहर में लाखों जानें तो गईं ही, साथ ही बड़ी संख्या में लोगों को अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ी। कई लोगों के धंधे बंद हो गए तो कई लोगों को काम से निकाल दिया गया। उत्तराखंड के पौड़ी जिले के रहने वाले सतिंदर रावत भी इन्हीं में एक हैं। वे दुबई में एक निजी कंपनी में मैनेजर थे। अच्छी खासी तनख्वाह थी। अप्रैल 2020 में लॉकडाउन के चलते उनकी नौकरी चली गई। इसके बाद वे वापस गांव लौट आए और पत्नी के साथ मिलकर मशरूम की खेती शुरू की।
अभी वे हर महीने उससे 2.5 लाख की कमाई कर रहे हैं। उन्होंने 10 ऐसे लोगों को भी रोजगार से जोड़ा है जिनकी नौकरी कोरोना के चलते गई है। 46 साल के सतिंदर का रिटेल मार्केटिंग में अच्छा अनुभव रहा है। करीब 20 साल तक उन्होंने इस फील्ड में काम किया है। पहले भारत में और फिर बाद में वे दुबई शिफ्ट हो गए। जबकि उनकी पत्नी सपना ने बायोलॉजी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है। सतिंदर कहते हैं कि पहले से हमारा कोई बिजनेस प्लान नहीं था। खेती से तो कुछ खास लगाव भी नहीं था। जब अप्रैल में कंपनी की तरफ से नोटिस मिला तो हमने करियर को लेकर आगे का प्लान करना शुरू किया। चूंकि मेरी पत्नी की दिलचस्पी फार्मिंग में थी, इसलिए हमने तय किया कि गांव लौटकर खेती करेंगे।
जून-जुलाई में सतिंदर गांव लौट आए। यहां आकर उन्होंने बिजनेस प्लान पर काम करना शुरू किया। अलग-अलग लोगों से मिले। सपना के पिताजी एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट में रहे थे तो उनसे भी सलाह ली। इसके बाद उन्होंने मशरूम की खेती का प्लान किया। क्योंकि, वे पारंपरिक खेती न करके ऐसी खेती करना चाहते थे, जिससे कम समय में अच्छा मुनाफा हो सके और दूसरे लोगों के लिए रोजगार के अवसर भी मिल सकें। सतिंदर ने रामनगर के एक किसान से मशरूम फार्मिंग की ट्रेनिंग ली। उनसे मशरूम उगाने और खाद तैयार करने का प्रॉसेस सीखा। इसके बाद सितंबर 2020 में उन्होंने लीज पर 1.5 एकड़ जमीन ली और मशरूम की खेती की शुरुआत की।
इसके लिए उन्होंने पक्के घर बनाने की बजाय झोपड़ी यानी हट मॉडल पर काम करना शुरू किया। ताकि कम बजट में और गांवों में भी आसानी से इसे किया जा सके। दूसरे किसान भी इस मॉडल से खेती कर सकें। सतिंदर ने दो झोपड़ी यानी हट लगाए हैं। जनवरी में उन्होंने इसमें पहली बार प्लांटिंग की। दो महीने बाद यानी मार्च से मशरूम निकलना शुरू हो गए। इसके बाद उन्होंने लोकल मंडियों के साथ ही बड़े होटल और रेस्टोरेंट वालों को सप्लाई करना शुरू कर दिया। तब करीब उन्हें 6 लाख रुपए की कमाई हुई थी। अभी वे दो तरह के यानी बटन मशरूम और ओएस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं। करीब 2.5 टन मशरूम की मार्केटिंग उन्होंने की है।
मार्केटिंग के लिए फिलहाल वे सोशल मीडिया और लोकल रिटेलर्स की मदद ले रहे हैं। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम श्रीहरी एग्रोटेक रखा है। जिसके जरिए उत्तराखंड के बाहर मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान भी अपने मशरूम भेज रहे हैं। लोकल लेवल पर वे मंडियों और रेस्टोरेंट को सप्लाई कर रहे हैं। जल्द ही वे अमेजन और फ्लिपकार्ट के जरिए भी मार्केटिंग करेंगे। करीब 10 लोगों को उन्होंने रोजगार भी दिया है। इसके साथ ही झोपड़ी के पास खाली पड़ी जमीन में उन्होंने सब्जियों की खेती शुरू की है। अगले कुछ दिनों में प्रोडक्ट्स भी निकलने लगेंगे। सतिंदर कहते हैं कि मशरूम की खेती आप झोपड़ी बनाकर या अपने घर में भी कर सकते हैं।
इसके लिए 15 से 20 डिग्री का टेम्परेचर होना चाहिए। अगर गर्मी ज्यादा हो तो AC लगाया जा सकता है। अलग-अलग वैराइटी के लिए अलग टेम्परेचर की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए सबसे पहले हमें खाद की जरूरत होगी। खाद बनाने के लिए गेहूं का भूसा, चावल का चोकर, सल्फर नाइट्रेट, जिप्सम, मुर्गी की खाद और गुड़ के सीरे की जरूरत होती है। इन सबको मिलाकर सीमेंट के बने बेड पर डाल दिया जाता है। एक बेड की लंबाई और ऊंचाई दोनों पांच फीट होनी चाहिए। उसके बाद इसमें पानी मिला दिया जाता है। करीब 30 दिन बाद खाद सूखकर तैयार हो जाती है। खाद तैयार होने के बाद उसमें मशरूम के बीज को मिला दिया जाता है।
एक क्विंटल खाद के लिए एक किलो बीज की जरूरत होती है। इसके बाद इसे पॉली बैग में पैक कर के झोपड़ी या रूम में रख दिया जाता है और दरवाजे को अच्छी तरह से बंद कर दिया जाता है ताकि हवा अंदर बाहर नहीं निकल सके। करीब 15 दिन बाद पॉली बैग खोल दिया जाता है। इसमें दूसरी खाद यानी नारियल पिट्स और धान की जली भूसी मिलाई जाती है। फिर ऊपर से हर रोज हल्की मात्रा में पानी डाला जाता है। करीब 2 महीने बाद इस बैग से मशरूम निकलने लगता है। एक बैग से करीब 2 से 3 किलो तक मशरूम निकलता है। देश में कई ऐसे संस्थान हैं जहां मशरूम की खेती की ट्रेनिंग दी जाती है।
इसके लिए सर्टिफिकेट और डिप्लोमा लेवल का कोर्स होता है। आप ICAR- खुम्ब अनुसंधान निदेशालय, सोलन से इसकी ट्रेनिंग ले सकते हैं। इसके अलावा हर राज्य में कुछ सरकारी और प्राइवेट संस्थान हैं, जहां इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से इस संबंध में जानकारी ली जा सकती है। इसके साथ ही कई किसान व्यक्तिगत लेवल पर भी इसकी ट्रेनिंग देते हैं। कई लोग इंटरनेट के जरिए भी जानकारी हासिल करते हैं। सतिंदर के मुताबिक मशरूम की खेती से कम लागत में और कम वक्त में बढ़िया मुनाफा कमाया जा सकता है। अगर आपके पास पहले से कोई पक्के निर्माण का घर है तो ठीक है, नहीं तो आप भी झोपड़ी मॉडल अपना सकते हैं।
इसमें लागत कम आएगी। इसके बाद खाद तैयार करने और मशरूम के बीज का खर्च आएगा। फिर मेंटेनेंस में भी कुछ पैसे लगेंगे। कुल मिलाकर 3 से 4 लाख रुपए में छोटे लेवल पर मशरूम की खेती की शुरुआत की जा सकती है। सतिंदर के मुताबिक एक साल में तीन बार उपज का लाभ लिया जा सकता है। यानी 8 से 10 लाख रुपए की कमाई आसानी से की जा सकती है। अगर आप बड़े शहरों में अपना प्रोडक्ट नहीं भेज पा रहे हैं तो कुछ होटल और रेस्टोरेंट वालों से डील की जा सकती है। उन्हें मशरूम की अच्छी खासी डिमांड रहती है। आजकल बड़े लेवल पर मशरूम की प्रोसेसिंग भी की जा रही है और नए-नए प्रोडक्ट बनाए जा रहे हैं। इससे भी अच्छी कमाई हो जाती है।
मिलिट्री मशरूम एक मेडिसिनल प्रोडक्ट है। यह पहाड़ी इलाकों में नैचुरली पाया जाता है। चीन, भूटान, तिब्बत, थाईलैंड जैसे देशों में इसकी खेती होती है। इसे ‘कीड़ा जड़ी’ भी बोला जाता है। मिलिट्री मशरूम हेल्थ के लिए काफी फायदेमंद होता है। यह हाई एनर्जेटिक होता है। एथलीट्स और जिम करने वाले लोग बड़े लेवल पर इसका इस्तेमाल करते हैं। एक किलो मशरूम तैयार करने में 70 हजार रुपए तक खर्च होते हैं। जबकि इसे दो लाख रुपए के दर पर बेचा जा सकता है। यानी प्रति किलो मशरूम पर सवा लाख रुपए तक की कमाई हो जाती है।