सारागढ़ी युद्ध : भारत के वो 21 जांबाज़ सैनिकों जिन्होंने पुरे 10,000 दुश्मनों को चटाई धूल


इतिहास में बहुत से ऐसे युद्ध है जिनका नाम किताबों में दर्ज़ है हम और आप इन्ही युधों के बारे में पढ़ते है और लिखते है ! इनके आलावा भी कई युद्ध ऐसे हुए है जो किताबों में न दर्ज़ हुए हो लेकिन वो अपने आप में ही एक इतिहास है ! सारागढ़ युद्ध भी एक ऐसे ही युद्ध का नाम है जिसमे 21 सिख सैनिकों ने विपरीत परिस्थितियों के बाबजूद अफगान के 10 हजार सैनिकों को घुटनों पर ला दिया था !

इस जंग ने कुर्वानी और वीरता की एक नई कहानी लिख दी थी ! यूनेस्को ने इस लड़ाई को दुनियां की सबसे 8 शुमार लड़ाइयों में चुना है ! इस पर अजय देवगन की सोन ऑफ़ सरदार ,राजकुमार संतोषी की बेटल ऑफ़ सारागढ़ी, और अक्षय कुमार की केसरी नाम की फिल्म आई है ! 1897 का दौर था ! ब्रिटिश सेना का दवदबा बढ़ता जा रहा था !

ब्रिटिश भारत से बाहरी इलाकों में भी अपना शासन करने का प्लान करने लगे थे ! उन्होंने अफगानियों पर भी अपने हमले शुरू कर दिए थे ! भारत अफगान सीमा पर उस समय दो किल्ले हुआ करते थे ! गुलिस्तान का किला और लॉक हार्ट का किला ! यह दोनों सीमा रेखा के छोरों पर स्थित थे ! लॉक हार्ट का किला ब्रिटिश सेना के लिए था ! जबकि गुलिस्तान का किला ब्रिटिश सेना के संचार का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था !

यह सारागडी से सटा हुआ था ! इस लिहाज से यह एक बहुत ही अहम जगह मानी जाती थी ! इसकी सुरक्षा के लिए लगभग 21 सिखों को तैनात किया गया था ! इनकी संख्या भले ही कम थी लेकिन इनकी बहादुरी पर अंग्रेजों को पूरा भरोसा था ! जोकि ब्रिटिश लगातार अफगानियों पर हमला करते रहते थे ! इसलिए अफगानी उनसे नाराज़ रहते थे !

दोनों पक्षों के अन्दर एक आग जल रही थी ! एक तरफ अंग्रेजों को हार पसंद नही थी और दूसरी तरफ अफगान बदला लेने के लिए भारत में आने की सोच रहे थे ! सारागढ़ी का माहोल गर्म था ! सेनिकों को सतर्क रहने के लिए कहा गया था ! एक तरह से कहा जाए तो सारागढ़ी के वो किल्ले तत्कालीन ब्रिटिश स्म्राज्यों की जान थे ! जिन पर अफगानी कब्जा करना चाहते थे ! हालांकि यह उनके लिये आसान नही था !

 

12 सितम्बर 1897 को सुबह का समय था ! जब सभी सिख सेनिक सोए हुए थे ! सूर्य की पहली किरण के साथ उनकी आँख खुली नज़रा चोंकाने बाला था ! करीब 10 हजार अफगानी सेनिक उनकी ओर तेज़ी से बढ़ रहे थे ! दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देख कर सब हैरान थे ! किसी को समझ नही आ रहा था 21 सिख सैनिकों को इतनी बड़ी संख्या को हराना बहुत बड़ी चुनौती थी !

इस बक्त यह सोचने का समय नही था की अफगानी रातों रात उन तक कैसे पहुँच गए ! उन्हें तुरंत मोर्चा सँभालने की जरूरत थी ! वे फोरन अपनी बंदूकों की ओर लपके ! उनके पास बंदूकें तो थी लेकिन इतनी मात्रा में नही थी की वो ज्यादा देर तक दुश्मन का सामना कर पाते ! स्थिति की नजाकत को समझते हुए उन्होंने तुरंत अंग्रेजी सेना को सम्पर्क करना जरूरी समझा ! लॉक हार्ट के किल्ले पर अंग्रेजी अफसर बेठे हुए थे ! सिखों ने उन्हें सन्देश भेजते हुए बताया , की एक बढ़ी संख्या पर अफगानियों ने चढाई कर दी है !

उन्हें तुरंत मदद की जरूरत है ! अफसर ने कहा की इतने कम समय में सेना नही भेजी जा सकती है उन्हें मोर्चा संभालना होगा ! सिखों के लिए करो या मरो की स्थिति बन चुकी थी ! सिख चाहते तो मोर्चा छोड़ बापस आ सकते थे लेकिन उन्होंने भागने से अच्छा दुश्मन का सामना करना उचित समझा ! वाहे गुरु का नाम लेकर वह अपनी अपनी जगह मजबूती से तेनात हो गए ! अफगानी निरंतर आगे बढ़ रहे थे ! सारे सिख सेनिक अपनी अपनी बन्दुक लेकर किल्ले के उपरी सतह पर खड़े हो गए थे ! सनाटा हर जगह पसर चूका था ! सिर्फ बड़ते हुए अफगानियों के घोड़ों की आवाज़ सुनाइ दे रही थी ! थोड़ी ही देर में एक गोली की आवाज़ के साथ जंग शुरू हो गई !

दोनों तरफ से अंधाधुंध गोलियां चल रही थी कुछ ही समय में में अफगानी समझ गए थे की यह जंग आसान नही होने बाली है ! वे इस तरह से सिखों को हरा नही पाएंगे ! उन्होंने एकजुट होकर सिखों पर हमला बोल दिया लेकिन सिखों ने अपना होंसला नही गवाया ! वो लगातार अफगानियों से लोहा लेते रहे ! अफगानी सेना की एक टुकड़ी ने किल्ले पर हमला करने की कोशिश की पर वे सफल नही हो सके ! अफगानी बुरी तरह से बोखला गए ,उन्होंने दिवार को तोडना शुरू किया वे इस में सफल रहे ! अब किल्ले की दिवार टूट चुकी थी! अफगानी सेनिक तेज़ी से किल्ले के अंदर घुसते जा रहे थे ! अफगानियों के किल्ले के अंदर आते ही बन्दूकों की लड़ाई हाथों और तलवारों में तवदील हो गई ! अफगानियों से लड़ना आसान नही था !

वो सब संख्या में बहुत ही ज्यादा थे ! इन सब के बाबजूद सिख सेनिक लड़ते रहे ! धीरे धीरे अफगान उन पर भारी पड़ने लगे थे ! कई सिख सेनिकों को गहरी चोटे लग चुकी थी ! उन 21 सेनिक में कुछ ऐसे भी थे जो पूरी तरह सिपाही नही थे !उनमे कुछ रसोइये थे तो कुछ सिग्नल मैन थे ! लेकिन वो सब अपने साथियों के लिए जंग में उतरे थे ! सिखों का मनोबल टूटने लगा था लेकिन तभी जो बोले सो निहाल ने उनमे जोश भर दिया ! उन्होंने अफगानियों को अपनी तलवारों से मारना शुरू कर दिया ! वो सब एक ही ताल में जो बोले सो निहाल , सश्रीयकाल के नारे के साथ आगे बढ़ते रहे ! और अफगानियों को मौत की घाट उतारते गए !

आख़िरकार सभी सिख सेनिक मारे गए ! वो सब शाहदत को प्राप्त हुए ! लेकिन मरने से पहले वे लगभग 600 अफगानियों को मार चुके थे ! आखिरकार दुश्मन भी थक गया और तय रणनीति से भटक गया ! जिसके कारण वो ब्रिटिश आर्मी से अगले दो दिन में ही हार गया ! उस बक्त ब्रिटिश पार्लयमेंट ने एक स्वर में इन सिपाहियों की तारीफ़ की थी ! मरणोपरांत 36 रेजमेंट के सभी 21 जवानों को परमवीर चक्र के बरावर विक्टोरिया क्रॉस से समानित किया गया !

ब्रिटेन में आज भी सारागढ़ी की जंग को शान से याद किया जाता है ! भारतीय सेना की आधुनिक सिख रेजमेंट आज भी 12 सितम्बर को हर साल सारागढ़ी दिवस मनाती है ! यह दिन उत्सव का होता है ! उन वीरो के पराक्रम और वलिदान के समान में जश्न मनाया जाता है ! 21 सिख सेनिकों ने सिखा दिया था होंसलों में दम हो तो कोई भी तुम्हें रोक नही सकता है ! सारागढ़ी का युद्ध बताता है की भारत वीरो की भूमि है ! यहाँ लोग अपने वतन पर हंसते हँसते जान न्योछावर करते है !