438 दिनों तक समुद्र में जिंदगी से लड़ता रहा है ये शख्स फिर ज़िंदा लौटा, रूह काँप उठेगी इस इंसान की कहानी जानकर


ज़िन्दगी में हादसे कभी पूछ कर नहीं होते। इंसान के साथ कब क्या हो जाए कुछ कह नहीं सकते इसलिए जो कुछ भी आज है उसके लिए हमेशा शुक्र गुजार करना चाहिए। भगवान ने जो भी दिया उसके लिए हमेशा शुक्र गुजार रहना चाहिए क्यूंकि कई लोग उसके लिए भी तरसते है। आज हम आपको एक ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे है जहाँ एक साथ हुई ऐसी ट्रेजेडी जिसके बारे में उसने कभी सोचा भी नहीं था। आइये जानिए।

17 नवंबर 2012. यह दिन इस शख्स की ज़िन्दगी का सबसे यादगार दिन है जब अल्वारेंगा मैक्सिको के एक गांव से निकला और गहरे समुद्र में मछली पकड़ने उतर गया. इस यात्रा में उसके साथ उसका एक साथी भी था. मछलियों पकड़ने में उसे अल्वारेंगा जितनी महारत हासिल नहीं थी. मगर वो खुद को निखार रहा था. अल्वारेंगा की योजना के हिसाब से उसकी यह यात्रा करीब एक दिन तक चलने वाली थी.इस दौरान ब्लैक टिप शार्क और सेलफिश को पकड़ने का उसका प्लान था. सब कुछ योजना के अनुसार ही शुरू हुआ था. मगर तभी एक खतरनाक तूफान ने अपनी दस्तक दे दी. भारी बारिश और तेज हवाओं के कारण उसे खतरे की चेतावनी मिल चुकी थी.

उस समय इस शख्स की हालत ऐसी थी कि न तो इसके पास कुछ खाने को था न ही पीने को। एक ऐसी जगह पर था जहाँ  न रोशनी थी, और न ही किनारे से संपर्क करने का कोई तरीका. खुले समुद्र में उसकी बोट बेलगाम आगे बढ़े जा रही थी. भूख लगने पर वो अपने नंगे हाथों से मछली, कछुए, जैसे समुद्री पक्षी पकड़ता और उनका मास कच्चा ही खा जाता. पीने के लिए अल्वारेंगा ने बारिश के पानी का सहारा लिया. एक पल ऐसा भी आया, जब उसके पास पीने के लिए पानी नहीं बचा ऐसे में उसने कछुओं का खून और अपना मूत्र तक पिया. करीब 4 महीने के बाद साल्वाडोर के साथी ने कच्चे मांस को खाने से मना कर दिया और अंतत: भुखमरी से मर गया.

खुद को जैसे तैसे ज़िंदा रख पाए उसके लिए इस शख्स ने सब कर दिया। उसने अपने आसपास कई सारे जहाजों की चहलकदमी महससू की. मगर कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया. इस अकेलेपन में अल्वारेंगा ने गीतों और भजनों को समय काटने का साधन बनाया.30 जनवरी 2014 को, 438 नारकीय दिनों के बाद, अलवरेंगा ने कुछ दूरी पर पहाड़ों को देखा. यह मार्शल द्वीप समूह का एक छोटा सा कोना था. उसने अपनी नाव छोड़ी और तैरकर किनारे पर आ गया. आकिरकार वह जमीन पर था. किनारे पर पहुंचकर जैसे ही वो खड़े होने की कोशिश करता वो गिरकर बेहोश हो जाता. जल्दी ही वहां के स्थानीय लोगों की उस पर नज़र पड़ी और वो उसे अपने घर लेकर आए. इसके बाद उन्होंने संबंधित अधिकारियों को अल्वारेंगा के बारे में सूचना दी.

पुलिस जब मौके पर पहुंची तो उसने देखा कि अल्वारेंगा के टखने सूजे हुए थें. उसकी आंखों की रौशनी बहुत कम हो गई थी. वो मुश्किल से चल पा रहा था. उसके बाल किसी झाड़ी की तरह उलझ गए थे। अल्वारेंगा जब वापस अपने परिवार के पास लौटा तो सभी की आंखें खुली की खुली रह गईं. सभी ने उसे मृत मान लिया था. सबसे ज्यादा खुशी अल्वारेंगा के माता-पिता और उसकी बच्ची को हुई. 14 साल की बेटी फातिमा अल्वारेंगा के जाने के बाद अपने नाना-नानी के साथ रहती थी. ये कहानी थी एक ऐसे आदमी की, जो 400 से भी ज़्यादा दिनों तक समुद्र में रहा और अपनी हिम्मत के बलबूते वह ज़िंदा अपने घरवालों के पास आ सका।