प्राचीन काल के इस मंदिर की रामायण काल से जुड़ी है ऐतिहासिकता, ज़िन्दगी में एक बार जरूर जाए यहाँ।


वैसे तो भारत में कई ऐसे कई पौराणिक और आध्यात्मिक मंदिर है जिनकी मान्यता प्राचीन काल से जुडी है। लेकन प्रयागराज की धरती पर ऐसे अनेकों जगह है जहाँ धर्म से जुडी कई बातों का है जिक्र। इतना ही नहीं बल्कि शिव को समर्पित ऐसा ही एक मंदिर मनकामेश्वर मंदिरहै जो कि गंगा,यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर मौजूद है.यह वह मंदिर है जहां साल के 12 महीने भक्तजनों की भारी भीड़ होती है.मान्यता है कि यहां पर मांगने से भगवान शिव मन की सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, इसलिए अपनी-अपनी प्रार्थनाओं को लेकर लोग दूर-दूर से यहां आते हैं ।

एक रिपोर्ट के मुताबिक यहाँ मौजूद मंदिर का वर्णन विभिन्न पुराणों में है, पद्म पुराण में बताया गया है कि कामदेव को भस्म करके शिव जी यहां पर लिंग के रूप में स्थित हो गए थे और तब से यहां पूजा अर्चना का सिलसिला जारी है.अगर बात करें त्रेता युग में की तो भगवान राम वनवास जाते समय जब प्रयाग पहुंचे तो उन्होंने किले में स्थित अक्षयवट के नीचे आराम किया और यहां स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक किया। इस मंदिर में कई ऐसी मूर्तियां आज भी मौजूद है जो बेहद पुराने समय से है।

यहाँ मौजूद पंडित भी इसकी विशेषता का जिक्र अक्सर करते नजर आते है जब से लोगो को पता चला तो वह भी दर्शन के लिए आते जाते है साथमें ही इतिहास की जानकारी भी ले लेते है। कहा जाता है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब राम वापस अयोध्या लौटने लगे तो पुनः भारद्वाज ऋषि से आशीर्वाद लेने के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ मनकामेश्वर शिव के दर्शन के लिए आए थे।

यहाँ अगर आप देखेंगे तो मनकामेश्वर मंदिर में भगवान मनकामेश्वर के अलावा सिद्धेश्वर और ऋणमुक्तेश्वर शिव, शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। भक्तजन यहां कामेश्वर और कामेश्वरी दोनों की पूजा-अर्चना करते हैं, यहां हनुमान जी भी दक्षिणमुखी रूप में विराजमान हैं.ये देखने में बेहद अद्बुध नजारा लगता है जिसने भी देखा वह इसकी आस्था में विलीन हो गया।