15 घंटों में 216 KM साइकिल चलाकर 17 वर्षीय लड़की पहुंची दादी से मिलने, “साइकिल गर्ल” नाम से हो रही है मशहूर


जिस इंसान की चाह हो तो फिर राह अपने आप बन ही जाती है इसमें कोई शक नहीं। इंसान अपनी मेहनत, लगन और हौंसले से कुछ भी जीत सकता है। बस उसके अंदर उसे पाने की ललक होनी चाहिए। इंसान अगर चाहे तो वह कुछ भी कर सकता है, दशरथ मांझी ने तो पहाड़ तोड़कर उसमे से रास्ता बनाकर या साबीत भी किया था उसी प्रकार आरती प्रजापति ने भी वो किया, जो हर किसी के लिये सरल नहीं है। आइये जानते हैं उनके विषय में जिनकी आज हर कोई तारीफ कर रहा है।ठीक इसी पर आधारित एक 17 वर्षीय लड़की की कहानी जिसे सुनने के बाद आपको भी होगी हैरानी।

दरअसल ये कहानी है एक ऐसी लड़की की है जिसने तो उम्र देखी और न समय बस उसे उस समय जो मिला उसे उठाकर वह चल दी अपनी बीमार दादी से मिलने। 17 वर्ष की बहादुर लड़की आरती प्रजापत को जब मालूम हुआ कि उसकी दादी बीमार है, तब उसने बिना कुछ सोचे समझे साइकिल उठाई और दादी से मिलने निकल गई, आरती जयपुर से 216 किलोमीटर केवल साइकिल चलाकर भरतपुर पहुंची। आरती अर्जुन नगर जयपुर से सुबह 4:30 बजे भरतपुर के लिए निकल पड़ी और संध्या के समय 7 बजे अपने दादा-दादी के पास पहुंची।

रिपोर्ट्स में मिली जानकारी के अनुसार आरती के दादा-दादी डहरा गांव में रहते हैं। आरती दादी तक पहुंचने के सफ़र में मार्ग भूल गई और आगरा की तरफ निकल गई। फ़तेहपुर सिक्री, उत्तर प्रदेश केवल 15 किलोमीटर का बोर्ड देख कर आरती को मालूम हुआ कि उसने ग़लत मार्ग ले लिया है। आरती ना ही डरी और न ही उसकी पेडलिंग रुकी।आरती से उनकी माँ ने कहा था कि वो दशहरा के बाद दादा-दादी से मुलाकात करने के लिए जाएंगे लेकिन आरती नहीं रुकी। 11वीं की छात्रा आरती को साइकिल चलाना बहोत पसंद है, आरती प्रतिदिन 50 किलोमीटर साइकिल चलाती है।

आपको ये जानकर हैरानी होगी की आरती ने इतना बड़ा अकेले ही तय किया। उसे खुद भी इस बात का अंदाज़ा नहीं था की वह इस सफर अकेले कर लेगी लेकिन उसने कर दिखाया। । हालांकि इस बीच वह मार्ग से भी भटक गई और उसकी तबीयत भी बिगड़ने लगी। लेकिन उसने फिर भी अपने होसलो को कम नही होने दिया। उसी जुनून से आगे बढ़ती चली गई। आरती की जज्बे की हर कोई प्रशंसा कर रहा है।आरती ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि मुझे जब दादी का स्वास्थ्य ठीक नही है, पता चला तो मुझसे रहा नहीं गया। आरती को मां ने बहुत समझाने की कोशिश कि कुछ दिन बाद बस से चलते हैं, लेकिन वह अपनी जिद से पीछे नही हटी। परिवार वालों के मना करने के बात भी वह अकेले ही साइकिल से 13 अक्टूबर को भरतपुर के लिए अपने मजबूत होसलो के साथ निकल पड़ी।